Consumer | Consumer Protection and Education | Consumer Problems

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Consumer Protection and Education

उपभोक्ता का अर्थ ( meaning of Consumer)


जीवन यापन के लिए परिवार के सभी सदस्य मिल-जुलकर विभिन्‍न वस्तुओं (Goods) एवं सेवाओं (Services) का चयन तथा उपयोग करते हैं। इन वस्तुओं एवं सेवाओं को खरीदने या उपयोग करनेवालों को उपभोक्ता ( Consumer ) कहते हैं। परिवार का प्रत्येक सदस्य किसी न किसी रूप में उपभोक्ता होता है।

इसी प्रकार किसी एक वस्तु का उत्पादनकर्ता किसी दूसरी वस्तु का उपभोक्ता हो सकता है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपनी आवश्यकता की सभी वस्तुओं का उत्पादन नहीं कर सकता है तथा उनकी पूर्ति के लिए उसे किसी दूसरे उत्पादनकर्ता पर निर्भर रहना पड़ता है। अत: यह कहना अनुचित न होगा कि जन्म लेते ही शिशु भी कई वस्तुओं एवं सेवाओं का उपभोग करने लगता है और उपभोक्ता कहलाता है।

परिवार के उस सदस्य का उपभोक्ता के रूप में महत्व और भी बढ़ जाता हे, जिसे बाजार में उपलब्ध उपभोग की विभिन्‍न वस्तुओं एवं सेवाओं में से चयन करके खरीददारी करनी होती है। उसे सीमित आय में उत्तम प्रकृति एवं स्तर की वस्तुओं का चयन करके परिवार के सभी सदस्यों की आवश्यकताओं की यथासंभव पूर्ति करनी होती है।

मौद्रिक आय का अधिक-से-अधिक लाभ उठाने के लिए परिवार के सभी सदस्यों को अपने मानवीय साधन, जैसे-बुद्धि, शक्ति, समय आदि का उपयोग करना चाहिए। चूँकि आजकल. बाजार में विभिन्‍न किस्मों, मूल्यों, प्रकृति एवं स्तर की वस्तुएँ उपलब्ध होती हैं, अतः परिवार के सदस्यों को अपनी आवश्यकतानुसार इनका चयन एवं खरीददारी करते समय अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

उपभोक्ता संरक्षण ( Consumer Protection )


उपभोक्ता संरक्षण का अर्थ है-उपभोक्‍ता के हितों की रक्षा। वैसे तो उपभोक्ताओं को अपने हितों की रक्षा स्वयं ही करनी होती है, परंतु आज उपभोक्ताओं को इतनी परेशानियों का सामना करना पड़ता है कि इनके संरक्षण के लिए सरकारी संस्थाएँ, गैरसरकारी संस्थाएँ व अन्य संस्थाएँ मिल-जुलकर इनके हितों की रक्षा के लिए कार्य करती हैं।

उपभोक्ता की समस्‍याएँ (Problems Faced by Consumer)


प्राय: व्यापारी अधिक मुनाफा कमाने के लिए उपभोक्ताओं को धोखा देते हैं और कई गलत कथकड़ों का सहारा लेते हैं। कई बार उपभोक्ता भी अपनी कमजोरी के कारण व्यापारियों से धोखा खा जाता है। प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी रूप में उपभोक्ता है। एक वस्तु का उत्पादक (Producer) किसी अन्य वस्तु का उपभोक्ता है, फिर भौ आज उपभोक्ता कई अनाचारों का शिकार होता है।


उत्पादक अपने उत्पादों को अधिक लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से धुआँधार विज्ञापनों, एकाधिकार व्यापार, बिक्रों कला तथा विभिन्‍न भ्रामक तरीकों का प्रयोग करते हैं। वस्तुओं की माँग उनकी बाजार में उपलब्धि से अधिक हा जातो है तो व्यापारियों को अधिक से अधिक मुनाफा कमाने का मौका मिल जाता है। कई बार तो व्यापारी बाजार में अपनो वस्तुओं की कृत्रिम कमी उत्पन्न करके भी उपभोक्ताओं से अधिक से अधिक मुनाफा कमाते हैं।

  1. वस्तुओं में मिलावट ( Adulteration )
  2. वस्तुओं पर अपूर्ण लेबल ( Inadequate Labeling )
    3.माप व तोल के दोषयुक्त साधन ( Defective Weights and Advertisement )
  3. भ्रामक व असत्य विज्ञापन (Misleading and Fake Advertisement)
  4. बाजार में नकली वस्तुओं की उपलब्धि (Availability of Imitations in Market)
  5. बाजार में घटिया किस्म की वस्तुओं की उपलब्धि (Availabiliy of substandard Goods)
  6. जमाखोरी के कारण बाजार में वस्तुएँ उपलब्ध न होना (Nonavailability of Goods due to Hoarding)
  7. व्यापारियों द्वारा धोखाधड़ी वाले कथकंडे अपनाना (उसे of False practices)
  8. वस्तुओं को कीमत में विविधता होनी (Different prices of Goods)
  9. दुकानदारों का बिल या नकद रसीद न देना (Shopkeepers Avoid Giving Bill/Cash Memo )
  10. वस्तुओं में मिलावट ( Adulteration ) आजकल बढ़ती हुई महँगाई और वस्तुओं की कम उपलब्धि के कारण खाद्य पदार्थों में मिलावट दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। मिलावट चाहे जान-बूझकर अधिक मुनाफा कमाने के लिए की गई हो या फिर असावधानी और वातावरण की अस्वच्छता के कारण अनजाने में हो गई हो, यह मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालती है।
  11. आज मिलावट की समस्या ने गंभीर रूप धारण कर लिया है। उपभोक्ता को प्रतिदिन के प्रयोग में आनेवाले कोई भी छोटी-से-छोटी अथवा बड़ी-से-बड़ी खाद्य सामग्री खरीदते समय मिलाबट का प्राय: सामना करना पड़ता है। व्यापारियों के लिए मिलावट करने का उद्देश्य केवल अधिक मुनाफा कमाना होता है, क्‍योंकि खाद्य पदार्थों की कमी के कारण उनके दाम दिन-प्रतिदिन बढ़ते जाते हैं और आम आदमी कौ पहुँच से दूर हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में व्यापारी मिलावट करके उपभोक्ता को धोखा देते हैं।
  12. उपभोक्ता भी अपनी अज्ञानता, लापरवाही व कई बार पसंद के कारण, मिलावटी खाद्य पदार्थ खरीदता हे और व्यापारियों को मिलावट करने का मौका देता है। उदाहरण के लिए आपने अनुभव किया होगा कि हम मिठाइयाँ खरीदते समय अनायास ही उनके विभिन्‍न रंगों की ओर आकर्षित होते हैं। यही कारण है कि व्यापारी उपभोक्ता की इस कमजोरी का पूर्ण लाभ उठाकर सस्ती मिठाइयों में सस्ते रंग डालकर उन्हें अधिक आकर्षक व विभिन्‍नतापूर्ण बनाकर उन्हें अधिक दामों पर बेचते हैं। इससे उपभोक्ता को आर्थिक हानि होने के साथ-साथ उसके स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है

एक अच्छा लेबल वह है जो उपभोक्ता को उस पदार्थ के बारे में सरल भाषा में सही जानकारी देता है। लेबल का मुख्य उद्देश्य ही उपभोक्ता को उसके द्वारा खरीदे जानेवाले पदार्थ के बारे में पूर्ण ज्ञान देना है, क्योंकि उपभोक्ता पदार्थ का विवरण जानने के लिए केवल लेबल पर ही निर्भर होता है।

अतः लेबल को उस पदार्थ की सच्ची तस्वीर प्रस्तुत करनी चाहिए। प्राय: व्यापारी अपूर्ण लेबल लगाकर उपभोक्ताओं को धोखा देने की कोशिश करते हैं, जिससे उपभोक्ता भ्रम में गलत वस्तु खरीद लेता है। उपभोक्ता को भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian standards) द्वारा निर्धारित एक अच्छे पूर्ण लेबल के गुणों या उन स्थितियों का ज्ञान होना आवश्यक है, जिनमें किसी पदार्थ को झूठा मार्क वाला समझा जाएगा।


भारतीय मानक ब्यूरो (Burean of Indian standards) ने एक अच्छे लेबल के लिए निम्न गुण निर्धारित किए हैं-

  1. संरक्षित पदार्थ का नाम।
  2. इसे बनाने में प्रयोग किए गए खाद्य पदार्थों की सूची।
  3. संरक्षित पदार्थ का भार अथवा मात्रा ।
  4. संरक्षित पदार्थ का मूल्य।
  5. प्रयोग किए गए परिरक्षकों, रंगों व सुगंधियों के नाम ।
  6. बैच नंबर अथवा कोड नंबर।
    7, स्तर नियंत्रक संस्थान का नाम (I.S.I., Agmark, F. P. O.) आदि।
  7. निर्माणकर्तो का नाम व पता।
  8. उस देश का नाम, जिसमें निर्मित किया गया है।
  9. निर्माण की तिथि।
  10. ,प्रयोग अवधि या खराब होने की अंदेशित तिथि।
  11. संरक्षित पदार्थ को संग्रह करने के निर्देश।

लेबल में उपर्युक्त वर्णन देने के साथ-साथ कुछ अन्य बातों का ध्यान रखना भी आवश्यक है :-

  1. लेबल ऐसा होना चाहिए जो खाद्य पदार्थ की प्रकृति के बारे में कोई असत्य, झूठी या धोखा देनेवाली भ्रांति उत्पन्न न करें।
  2. लेबल पर ऐसे शब्दों, तस्वीरों या अन्य मार्कों आदि का प्रयोग नहीं होना चाहिए, जिससे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वह किसी अन्य खाद्य पदार्थ जैसा होने का भ्रम उत्पन्न करे तथा उपभोक्ता इसी भ्रम में उसे खरीद ले। उपभोक्ता को अपूर्ण लेबल वाली वस्तुओं को नहीं खरीदना चाहिए तथा अन्य परिचित लोगों को भी ऐसी वस्तुओं को खरीदने की मनाही करनी चाहिए। इन्हीं प्रचारों के बल पर व्यापारियों की अपूर्ण लेबल लगाकर धोखा देने की प्रवृत्ति को
    रोका जा सकता है।

3 माप व तौल के दोषयुक्त साधन ( Defective Weights and Measures)
व्यापारी वर्ग माप व तौल के दोषयुक्त साधनों का प्रयोग करके उपभोक्ता को धोखा देते हैं; जैसे-

  1. प्राय: व्यापारी तौलनेवाले मानक (Standard) बाटों तथा मापनेवाले मानक बर्तनों का प्रयोग नहीं करते हैं। कई बार मापनेवाले बर्तनों के तल को ऊपर की ओर उठा देते हैं, जिससे कम वस्तु मापी जाती है।
  2. प्राय: दुकानदार हाथवाले तराजू का प्रयोग करते हैं और तराजू की डंडी, पलडे, सुई ठीक नहीं रखते हैं तथा तौलते समय अंगूठा लगाकर कम तौलते हैं।
  3. पैक किए हुए पदार्थों के डब्बे व शीशियों के आकार ऐसे होते हैं जो उपभोक्ता को उनके भार व नाप का सही अनुमान नहीं देते और भ्रम उत्पन्न करते हैं, जैसे-शीशियों के मोटे तले, लम्बी-पतली आकार वाली शीशियाँ या मोटे काँच की बनी शीशियाँ।
  4. खाद्य पदार्थों व अन्य वस्तुओं को डिब्बा सहित तौल कर बेचना एक आम बात है, जिससे उपभोक्ता को वह वस्तु कम मात्रा में मिलती है।
    तोल व माप के दोषयुक्त साधनों के प्रयोग की रोकथाम के लिए सन 1956 ई० में भारतीय संसद में मानक माप व तौल के लिए मिट्रिक पद्धति तथा दशमलब प्रणाली को देश भर में अपनाने का अधिनियम पास किया गया तथा अप्रैल 1962 ई० से यह मिट्रिक पद्धति ओर दशमलब प्रणाली संपूर्ण भारत में लागू कर दी गई।
    माप व तौल की मिट्रिक पद्धति ( Metric system of weight and Measurement) : माप व तौल की मिट्रिक पद्धति में निम्न इकाइयाँ हैं-
  5. माप की इकाई (Unit of length) – मीटर (मीटर)
  6. तौल की इकाई (Unit of weight) – ग्राम (Gram)
  7. द्रव मापने की इकाई (Unit of liquid measurement) – लीटर (लीटर)
    इस अधिनियम के अंतर्गत माप व तोल के केवल मानक साधनों की आवश्यकता और विस्तार पर ही बल नहीं दिया जाता, बल्कि उनके डिजाइन और आधारित पदार्थ के लिए भी निर्दिष्टीकरण करते हैं।

मानक माप ख तौल संबंधी अधिनियम 1976 के अनुसार कुछ मुख्य बातें निम्नलिखित हैंह-

  1. संपूर्ण भारत में माप व तोल के लिए मीट्रिक पद्धति व दशमलव प्रणाली के अतिरिक्त किसी अन्य पक को अपनाना गैरकानूनी है। उदाहरण के लिए किसी वस्तु को तोलने के लिए सेर, पाव, छटाँक आदि के बाटों का प्रयोग करना कानून के विरुद्ध हे।
  2. केवल मानक बाटों (Standard weights) एवं मानक मापों (Standerd meansure) का ही प्रयोग करना चाहिए। इन बाटों व मापों पर संबंधित माप व तौल कार्यालय की मुहर होनी चाहिए।. बिना मानक (Nonstandard) बाटों व मानकों का प्रयोग गैरकानूनी है।
  3. डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों के लेबल पर पूर्ण जानकारी होना अनिवार्य है। डिब्बाबंद पदार्थों पर उनम्रे रखी वस्तु का भार (Net weight) तथा डिब्बा सहित भार (Gross weight) देना आवश्यक हेै।
  4. किसी भी वस्तु को डिब्बा सहित तौलकर बेचना गैरकानूनी है, जैसे डिब्बा सहित मिठाइयों को तौलना आदि।

माप व तौल के दोषयुक्‍त साथनों के प्रयोग को रोकने के लिए उपभोक्ताओं के निम्न कर्तव्य हैं-

  1. वस्तुओं को तोलने से पहले तराजू की डंडी देख लेनी चाहिए। पैमानेवाले तराजू में भी यह देग्व लेना चाहिए कि सुई जीरो पर हो। यदि तराजू ठीक न हो तो तोलने से पहले उसे दुकानदार से ठीक करवाना चाहिए।
    जब कोई वस्तु अधिक मात्रा में खरीदनी हो तो आधी एक पलडे द्वारा तथा आधी दूमरे पलड़े द्वाग तुलवाकर लनी चाहिए। जिससे यदि एक पलड़े से कम तोला जाएगा तो दूसरे पलडे से तौलने पर अधिक होगा और वस्तु टीक मात्रा में प्राप्त होगी।
  2. तौलने वाले बाटों और तरल पदार्थ मापनेवाले बर्तनों का निरीक्षण करना चाहिए कि वह मानक माप व तौल अधिनियम के तदनुसार है या नहीं। दुकानदारों से देशी बाटों (सेर) या पत्थरों द्वारा तौली गई वस्तु नहीं खगीदनी चाहिए उपभोक्ताओं को दुकानदारों को तोल व माप के मानक साधनों का प्रयोग करने के लिए आग्रह करना चाहिए।
  3. कुछ खाद्य पदार्थ; जैसे-संतरे, मौसमी, केले, आम, अंडे आदि तौलकर बेचने की अपेक्षा गिनकर बेचे जाते हैं। उपभोक्ताओं को दुकानदारों की इस आदत को हटाने की कोशिश करनी चाहिए तथा इन पदार्थों को तुलवाकर ही खरीदना चाहिए।
  4. उपभोक्ताओं को डिब्बों या शीशियों में पेक पदार्थ खरीदने से पहले उनके लेबल या दिए भार या मात्रा को पढ़ लेनी चाहिए क्योंकि पैकेटों के आकार उपभोक्ताओं को धोखे में रख सकते हैं।
  5. उपभोक्ताओं को दुकानदार को पैमानेवाले, जमीन पर रखनेवाले तराजू के उपयोग के लिए जोर देना चाहिए तथा हाथवाले तराजू के प्रयोग को बढ़ावा नहीं देना चाहिए।
  6. किसी दुकानदार द्वारा कम तौलने या मापने का भ्रम होने पर उपभोक्ता तौल व माप कार्यालय ( Weight and Measures Bureau) को निम्न पर सूचित कर सकता है-
    तौल व माप ब्यूरो, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्‍ली सरकार, सी.जी.ओ. बिल्डिंग, नई दिल्‍ली-110006

4 भ्रामक व असत्य विज्ञापन ( Misleading and False Advertisements)
उत्पादनकर्ता अपने उत्पादन को लोकप्रिय बनाने के लिए उनके विज्ञापन देते हैं। विज्ञापन का महत्व तब और भी बढ़ जाता है जब बाजार में विभिन्‍न उत्पादनकर्ताओं द्वारा निर्मित एक प्रकार की अनेक वस्तुएँ आती है और प्रत्येक उत्पादनकर्ता अपने उत्पाद की बिक्री बढ़ाने के लिए भ्रामक विज्ञापनों का सहारा लेता है।

एक अच्छा विज्ञापन वह है जो उत्पाद का प्रचार करे और उसके बारे में सही जानकारी दे। चूँकि विज्ञापन एक ऐसा साधन है, जिसका उपभोक्ताओं पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है, अतः उत्पादनकर्ता अधिक से अधिक उपभोक्ताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए विज्ञापनों में अपनी वस्तु के गुणों को बढ़ा-चढ़ाकर बताता है।

विज्ञापन द्वारा उपभोक्ताओं को निम्नलिखित जानकारी मिलती है :

  1. विज्ञापन द्वारा बाजार में उपलब्ध विभिन्‍न उत्पादों के बारे में जानकारी मिलती है।
  2. विज्ञापन द्वारा उस वस्तु विशेष की विशेषताओं की जानकारी मिलती है। प्रायः यह देखा गया है कि विज्ञापनदाता अपने विज्ञापनों द्वारा उपभोक्ताओं को भ्रम में डालता है और भ्रामक विज्ञापनों के कारण उपभोक्ता को सही निर्णय लेने में काफी कठिनाई होती है। उत्पादनकर्ता विभिन्‍न माध्यमों, जैसे-अखबार, पत्रिकाओं, रेडियो, टेलीविजन, पोस्टर, सिनेमाघर, वीडियो कैसेट पर अपने विज्ञापन प्रसारित करते हैं, इन विज्ञापनों पर काफी खर्च आता है, जिसके कारण उस वस्तु की कीमत पर भी प्रभाव पड़ता है।
  3. प्रत्येक उत्पादनकर्ता अपने विज्ञापन द्वारा उपभोक्ता को यह समझाने की कोशिश करता है कि उसका उत्पाद, अन्य उत्पादों से भिन्‍न, उत्तम व आधुनिक है तथा उपभोक्ता की समझदारी इसी में है, वह उस उत्पाद को ही खरीदे। यही कारणौ है कि परस्पर विरोधी या भ्रामक विज्ञापनों के कारण उपभोक्ता को निर्णय लेना मुश्किल हो जाता है। किसी भी उल्पाद की बिक्री (Sales) में आज प्रभावी विज्ञापन का बहुत बड़ा हाथ है।
  4. यही कारण है कि प्रत्येक उत्पादनकर्ता अब अपने उत्पाद के स्तर पर ध्यान देने की अपेक्षा उसके विज्ञापन को अधिक महत्व देता है। उपभोक्ताओं को३ विभिन्‍न उत्पादनकर्ताओं द्वारा निर्मित विभिन्‍न वस्तुओं के बारे में जानकारी रखनी चाहिए तथा अपने या अन्य व्यक्तियों के अनुभवों के आधार पर ही वस्तुओं को खरीदना चाहिए और उत्पादनकर्ताओं अथवा दुकानदारों के बहकावे में नहीं आना चाहिए।
  5. यदि किसी वस्तु के प्रयोग के पश्चात उपभोक्ताओं को लगे कि उस विज्ञापन में उस वस्तु विशेष के बारे में बहुत बढ़ा-चढ़ाकर कहा गया है या विज्ञापन और वस्तु विशेष में तालमेल नहीं बैठता है तो जिस माध्यम पर उपभोक्ता ने विज्ञापन देखा या सुना हो, उसपर असत्य विज्ञापन की सूचना देनी चाहिए। जैसे रेडियो पर असत्य विज्ञापन प्रसारित हुआ हो तो विज्ञापन प्रसारण सेवा को, पत्रिका में छपा हो तो उसके कार्यालय को सूचित करना चाहिए।

6. बाजार में नकली वस्तुओं की उपलब्धि (Availabiliy of Imitations in Market)
आज कल बाजार में कई वस्तुओं की नकल मिलती है क्‍योंकि जो वस्तुएँ अपने गुणों के कारण लोकप्रिय हो जाती हैं, उनकी बाजार में बिक्री भी बढ़ जाती है, जिससे प्राय: बाजार में उनकी कमी रहती है। इसका लाभ कुछ उत्पादनकर्ता वैसी ही नकली वस्तुएँ बनाकर उठाते हैं। प्रायः असली और नकली वस्तुओं में बहुत कम अंतर होता है और उपभोक्ता के लिए इसकी जाँच करना अत्यंत कठिन होता है।
ऐसी नकली वस्तुओं की रोकथाम तभी संभव है जब उपभोक्ता नकली वस्तुएँ न खरीदें, जिससे उत्पादनकर्ताओं को इन नकली वस्तुओं के उत्पादन के लिए प्रोत्साहन न मिले। अत: उपभोक्ताओं को सदैव किसी विश्वसनीय दुकान से ही वस्तुएँ खरीदनी चाहिए। उपभोक्ताओं को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि वे वस्तुओं की खाली पैकिंग को न बेचें और न ही इधर-उधर फेंकें, जिससे उन पैकिंग में दोबारा नकली माल भरकर फिर से बाजार में न बेचा जाए। सदैव खाली पैकिंग को नष्ट करके ही फेंकना चाहिए।

  1. बाजार में घटिया किस्म की वस्तुओं की उपलब्धि ( Availability of substandard Goods)
    आज-कल बढ़ती हुईं महँगाई के कारण जहाँ उपभोक्ताओं के पास साधन सीमित होते हैं, वहाँ उत्पादनकर्ता अधिक से अधिक मुनाफा कमाना चाहते हैं, जिससे घटिया किस्म की वस्तुएँ बाजार में अधिक मिलने लगी हैं। ऊपर से देखने में ये वस्तुएँ अच्छी लगती हैं, परंतु जब प्रयोग में लाई जाती हैं तब उपभोक्ता को इनके घटिया किस्म का एहसास होता है। प्रायः घटिया किस्म की वस्तुओं की कीमत और अच्छी किस्म की वस्तुओं की कीमत में अंतर कम होता है परंतु इनके गुणों में अंतर अधिक होता है जो इन्हें प्रयोग में लाने पर ही पता चलता है।
    घटिया किस्म की इन वस्तुओं से बचने के लिए उपभोक्ता को चाहिए कि वह वस्तु खरीदने से पहले उसकी किस्म (Quality) के बारे में पूर्ण जानकारी प्राप्त कर ले और सदेव विश्वसनीय दुकान से ही खरीददारी करे।
  2. जमाखोरी के कारण बाजार में वस्तुएँ उपलब्ध न होना (Nonavailability of Goods due to Hoarding)
    प्राय: वस्तुओं की कीमत बढ़ने की संभावना होते ही; जैसे-वार्षिक बजट की घोषणा होने से पूर्व या फिर सूखा अथवा बाढ़ की स्थिति में व्यापारी उन वस्तुओं को जमा कर लेते हैं, जिसके कारण या तो उपभोक्ता को अधिक कीमत चुकानी पड़ती है या फिर उसके बिना गुजारा करना पड़ता है। जैसे ही वस्तुएँ महँगी हो जाती हैं दुकानदार कीमत बढ़ाकर उसे बेचने लगते हैं।
    ऐसी परिस्थितियों से निबटने के लिए सभी उपभोक्ताओं को मिलकर इस जमाखोरी व कालाबाजारी का सामना करना चरण जैसे-अधिक कीमत पर वस्तुएँ नहीं खरीदनी चाहिए तथा पुलिस से जमाखोर व्यापारियों की शिकायत करनी चाहिए।
  3. व्यापारियों द्वारा धोखाधड़ी वाले कथकंडे अपनाना (उसे of False practices)
    प्रायः त्योहारों जैसे दीवाली, ईद, रक्षाबंधन आदि पर व्यापारी वर्ग उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए अपनीं दुकानों पर “दामों में भारी छूट’” (Discount), दिवाली सेल (Diwali Sale), मुफ्त उपहार (Free Gifts) आदि की घोषणाएँ करते हैं। वास्तव में व्यापारी या तो पहले कीमत बढ़ाकर, फिर उस पर छूट लिखकर कम करते हैं या फिर घटिया किस्म की वस्तुओं की बिक्री करते हैं।
  4. वस्तुओं को कीमत में विविधता होनी (Different prices of Goods)
    प्रायः अलग-अलग बाजारों व दुकानों में एक ही वस्तु के दाम भिन्न-भिन्न होते हैं। थोक जी फुटकर दुकानों की अपेक्षा वस्तुएँ सस्ती उपलब्ध होती हैं तथा कई बार छोटी फुटकर दुकान में बड़ी दुकान की अपेक्षी वस्तुएँ सस्ती मिलती हैं। परंतु यह कदापि आवश्यक नहीं कि बड़ी-बड़ी दुकानों में वस्तुएँ सदैव ही महँगी हों, कई बडे दुकानदार बस्तुएँ अधिक मात्रा में खरीदते हैं और कम मुनाफे में बेचते हैं जिससे उनकी बिक्री भी अपेक्षाकृत अधिक होती है। अत: उपभोक्ता को चाहिए कि पहले विभिन्‍न बाजारों व दुकानों से कीमतों की जानकारी प्राप्त करें, तत्पश्चात ही खरीदारी करें।
  5. दुकानदारों का बिल या नकद रसीद न देना (Shopkeepers Avoid Giving Bill/Cash Memo )
    प्राय: दुकानदार उपभोक्ता को वस्तु की खरीदारी पर बिल या नकद रसीद नहीं देते हैं क्योंकि या तो उनकी दुकान रजिस्टर्ड नहीं होती या फिर कर ( Value added tax) को बचाने के लिए ऐसा करते हैं।