बादल कैसे बनते हैं ? | जलचक्र | हम जल (Jal) को कैसे संरक्षित कर सकते हैं

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जलचक्र , बादल कैसे बनते हैं ?

क्या आप जानते हैं बादल कैसे बनते हैं ? पृथ्वी का 2/3 भाग जल (jal)से घिरा हुआ है? इस जल का अधिकांश भाग समुद्रों और महासागरों में है समुद्रों और महासागरों के जल में बहुत से लवण घुले होते हैं जिससे जल खारा होता है। इमलिए यह पीने के लिए अनुपयुक्त तथा अन्य घरेलू, कृषि तथा उद्योगों की आवश्यकता की पूर्ति के लिए उचित नहीं है। कदाचित आपने एस. टी. कोलरिज़ द्वारा 1798 में लिखी गई कविता ‘राइम ऑफ दि एनशिएंट मैरिनर! को ये पंक्तियाँ सुनी होंगी:

हर जगह जल ही जल पीने के लिए कोई बूँद नहीं *

यहाँ कवि ने महासागर में भटके किसी जहाज़ के नाविकों की करुण गाथा का उल्लेख किया है।

फिर भी महासागर हमारे उपयोग के लिए जल आपूर्ति में एक आवश्यक भूमिका निभाते हैं। क्‍या आपको यह आश्चर्यजनक लगता है? आखिरकार जो जल हम उपयोग करते हैं वह खारा नहीं होता। हममें से बहुत-से लोग महासागरों से बहुत अंधिक दूरी पर रहते हैं। क्या इन स्थानों की जल आपूर्ति भी महासागरों पर ही निर्भर करती है? महासागरों का जल उन तालाबों, झीलों, नदियों तथा कुओं में केसे पहुँचता है जो हमें जल की आपूर्ति करते हैं। ऐसा क्‍यों है कि इन स्रोतों का जल किसी भी प्रकार से खारा नहीं होता है? इसे समझने के लिए हमें जलचक्र के विषय जानना आवश्यक हे। ।

जलचक्र

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जल के विलुप्त होने की युक्ति

आपने कितनी बार यह देखा हे कि फ़र्श पर फैला जल कुछ समय बाद सूख जाता है? यह जल विलुप्त होता प्रतीत होता है। इसी प्रकार गीले कपड़ों के सूखते समय भी जल विलुप्त हो जाता है वर्षा के पश्चात्‌ गीली सड़कों, छतों तथा अन्य स्थानों से भी जल विलुप्त हो जाता है। यह जल कहाँ चला जाता है?

इस बात को ऐसे समझे कि हम एक गिलास में पानी और नमक उस जल को गर्म किया था जिसमें नमक घुला हुआ था? हमने क्‍या पाया. था? जल वाष्पित हो गया था तथा नमक शेष रह गया था। इस तरह से हमें यह बोध होता है कि गर्म करने पर जल, जलवाष्प में परिवर्तित हो जाता हे। इस से हम यह भी अनुभव करते हैं कि. जलवाष्प अपने साथ जलवाष्प वायु का -एक भाग बन जाती है जिसे प्रायः देखा नहीं जा सकता।

हमने यह भी पाया था कि जल को गैसीय अवस्था में परिवर्तित करने के लिए उसे गर्म करना अनिवार्य है तथापि हमने यह देखा है कि खेतों, सड़कों, छतों तथा अन्य जमीनी क्षेत्रों से भी जल, जलवाष्प में परिवर्तित होता रहता है। महासागरों का खारा जल जो गहरे गड्डें में छूट जाता है, वाष्पन के परिणामस्वरुप नमक के ढेर के रूप में एकत्र हो जाता है। वाष्पन के लिए आवश्यक यह ऊष्मा, जन को कहाँ से प्राप्त होती है?

दिन के समय सूर्य की किरणें महासागरों, नदियों, झीलों तथा तालाबों में भरे जल पर पड़ती है। खेत तथा अन्य भूमिक्षेत्र भी सूर्य की किरणों को ग्रहण करते हैं। इसके फलस्वरूप इन सभी का जल, निरंतर वाष्प में परिवर्तित होता रहता है। तथापि जल में घुले लवण शेष रह जाते हैं।

सूर्य के प्रकाश में वाष्पन तेजी से होता है। जल को किसी बर्नर पर गर्म करने पर वाष्पन और अधिक तेज़ी से होता है। क्या जलवाष्प के वायु में अंतरित होने का अन्य कोई प्रक्रम भी हे?

पोधों द्वारा जल की क्षति

सभी पोधों को वृद्धि के लिए जल की आवश्यकता होती है। पौधे इस जल
को कुछ मात्रा का उपयोग अपना भोजन बनाने में करते हैं तथा कुछ मात्रा को अपने विभिन्‍न भागों में सुरक्षित रखते हैं। पौधे इस जल का शेष भाग वाष्पेत्सर्जन प्रक्रम द्वारा जलवाष्प के रूप में वायु में मुक्त कर देते हैं।

वायु में जल, वाष्पन तथा संघनन के प्रक्रमों द्वारा प्रवेश करता है। क्या यह जल सदा के लिए लुप्त हो जाता है? नहीं यह हमें पुनः प्राप्त हो जाता है।

बादल कैसे बनते हैं ?

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जल से आधा भरा गिलास लीजिए। गिलास को बाहर से सूखे कपडे से पोंछिए। जल में कुछ बर्फ़ डालिए॥। एक या दो मिनट तक प्रतीक्षा कीजिए। गिलास के बाहरी पृष्ठ में होने वाले परिवर्तनों का प्रेक्षण कीजिए

गिलास की बाहरी सतह पर जल की बूँदें कहाँ से आती हें। बर्फ़्युक्त जल से भरे गिलास की बाहरी सतह, बाहर की हवा को ठंडा कर देती है ओर जलवाष्प गिलास की सतह पर संघनित हो जाती है।

जल को पृथ्वी के पृष्ठ पर पुनः वापस लाने में संघनन-प्रक्रम की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। यह कैसे होता है? जेसे-जेसे हम पृथ्वी के पृष्ठ से ऊपर जाते हैं, ताप कम हो जाता हेै। जैसे जैसे वायु ऊपर उठती जाती है, ठंडी होती जाती है। पर्याप्त ऊँचाई पर वायु इतनी ठंडी हो जाती है कि इसमें उपस्थित जलवाष्प संघनित होकर छोटी-छोटी जल की बूंदों, जिन्हें जलकणिका कहते हैं, में परिवर्तित हो जाता है। ये ही छोटी जलकणिकाएँ, जो-वायु में तेरती रहती हैं, हमें बादलों के रूप में दिखाई देती है|

इस प्रकार बनी हुई बहुत-सी जलकणिकाएँ आपस में मिलकर एक बड़े आमाप की जल की बूँदें बनाती
है। इनमें से कुछ जल की बूँदें इतनी भारी हो जाती हैं कि वे नीचे की ओर गिरने लगती हैं। इन गिरती हुई बूँदों को ही हम वर्षा कहते है। विशेष परिस्थितियों में यह ओले या हिम के रूप में भी गिर सकती है। इस प्रकार वाष्पन तथा वाष्पोत्सर्जन द्वारा जल वायु में चला जाता है, बादल बनते हैं और वर्षा, ओले तथा हिम के रूप में जल पुनः धरती पर वापस आता है।

पुनः महासागरों की ओर वर्षा तथा हिम के रूप में पृथ्वी के विभिन्न भागों में ” आए जल का क्‍या होता है? प्रायः समस्त भूपृष्ठ महासागरों के तल से ऊँचे हें। वर्षा तथा हिम के रूप में भूमि पर गिरा अधिकांश जल, अंततः महासागरों में वापस चला जाता है। यह विभिन्‍न ढंगों से होता है। पर्वतों पर हिम पिघलकर जल बन जाती हे। यह जल पहाड़ों से झरनों तथा नदियों के रूप में नीचे गिरता है। कुछ जल जो वर्षा के रूप में भूमि पर गिरता है, वह भी नदियों और झरनों के रूप में बह जाता है।

अधिकांश नदियाँ भूमि पर लंबी दूरी तय करती हैं और अंततः किसी समुद्र या महासागर में गिर जाती हैं तथापि कुछ नदियों का जल झीलों में बह जाता है। वर्षा का जल भी झीलों तथा तालाबों को भर देता है। वर्षा के जल का कुछ भाग भूमि द्वारा सोख लिया जाता है और मृदा में विलुप्त हुआ प्रतीत होता है। इस जल का कुछ भाग वाष्पन तथा वाष्पेत्सर्जन द्वारा, वापस वायु में चला जाता है। शेष जल धीरे धीरे भूमि के नीचे रिसता रहता है। इस जल का अधिकांश भाग हमें भौम-जल के रूप में उपलब्ध हो जाता है।

कुओं का भरण भौम जल से ही होता है। इसी प्रकार कुछ झीलों के जल का स्रोत भी भौम जल ही होता है। हैंडपंप या नलकूप से खींचा गया जल, भौम-जल से ही आता है। जिन क्षेत्रों में अधिक हैंडपंप या नलकृप उपयोग होते हैं वहाँ पर भोम-जल प्राप्त करने के लिए हमें गहरी खुदाई की आवश्यंकता होती है। अति उपयोग के कारण भौम-जल के स्तर की यह क्षति चिंता का विषय हे। पहेली एक चिंता को आपसे बाँटना चाहती है। उन क्षेत्रों में, जहाँ भूमि पर वनस्पति बहुत कम हे या बिलकुल ही नहीं है वहाँ वर्षा का जल शीघ्र बह जाता है।

बहुत-से ऐसे भी क्षेत्र हैं जहाँ पर अधिकांश जमीन कंक्रीट से ढकी होती है। ऐसी भूमि में जल का रिसाव बहुत कम होता हे जिससे अंततः भोम-जल की उपलब्धता प्रभावित हो जाती है। वर्षा का बहता जल अपने साथ मृदा के ऊपरी पृष्ठ को भी बहा ले जाता है। अब हम यह जानते हैं कि भूमि की सतह पर वर्षरूपी जल, ओलों तथा हिम के रूप में महासागरों में वापस पहुँच जाता है।

इस प्रकार जल पृथ्वी की ऊपरी सतह से जलवाष्प के रूप में वायु में जाता है वर्षा, ओलों तथा हिम के रूप में वापस लौटता है ओर अंत में वापस महासागरों में लौट जाता है। जल के इस प्रकार चक्रण करने को जलचक्र कहते हैं । समुद्र तथा भूमि के बीच यह जलचक्र एक निरंतर प्रक्रम है। यह भूमि पर जल की आपूर्ति बनाए रखता हे।

यदि भारी वर्षा हो तो क्‍या होगा ?

वर्षा का समय, अवधि तथा मात्रा विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न होता है। संसार के कुछ भागों में पूरे वर्ष वर्षा होती रहती हे, जब कि ऐसे स्थान भी हें जहाँ पर वर्षा कुछ दिनों के लिए ही होती है। हमारे देश में अधिकांश वर्षा मानसून के मौसम में होती है। विशेषतः गर्मी के गर्म दिनों के बाद वर्षा हमें राहत प्रदान करती है। बहुत-सी फसलों का बोया जाना मानसून के आने पर निर्भर करता हे।

परंतु अत्यधिक वर्षा से बहुत-सी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। भारी वर्षा से नदियों, झीलों तथा तालाबों का जल स्तर बढ़ सकता है। ऐसा होने पर जल एक बडे क्षेत्र में फेलकर बाढ़ का कारण बन सकता है। यह खेतों, वनीं, गाँवों ओर शहरों को जलमग्न कर सकता है। हमारे देश में बाढ़ से फंसलें, पालतू जानवर, संपदा तथा मानव जीवन की अपर क्षति होती है। बाढ़ के समय जल में रहने वाले जीव भी बह जाते हैं। प्रायः जब बाढ़ का जल उतरता है तो ये जलश्य जीव, थल भाग में फंसकर मर जाते हैं। वर्षा भूमि पर रहने वाले जीवों को भी प्रभावित करती है।

यदि काफ़ी समय तक वर्षा न हो तो क्‍या होगा ?

क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि यदि किसी क्षेत्र में एक वर्ष या उससे भी अधिक समय तक वर्षा न हो तो क्या होगा? वाष्पन एवं वाष्पोत्सर्जन द्वारा मृदा से लगातार जल की क्षति होती रहती है क्योंकि यह वर्षा द्वारा वापस नहीं लाया जा रहा है, इसलिए मृदा सूख जाती है। उस क्षेत्र के तालाबों और कुओं में जल ‘ का स्तर गिर जाता है और उनमें से कुछ सूख भी जाते हैं। भौम-जल की भी क्रमी हो जाती हे। इससे सूखा पड़ सकता हे। सूखे की स्थिति में खाद्यान्न और चारा प्राप्त करना दुर्लभ हो जाता है। कदाचित्‌ आपने हमारे देश या संसार के कुछ भागों में पडे सूखे के बारे में सुना होगा। क्या आपको जानकारी है कि इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को किन-किन . कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है? इन परिस्थितियों में पशुओं और वनस्पति की हानि होती है।

हम जल को कैसे संरक्षित कर सकते हैं ?

पृथ्वी पर उपलब्ध जल का केवल एक छोटा-सा भाग ही पौधों, जंतुओं तथां मनुष्यों के प्रयोग के लिए उपयुक्त होता है। अधिकांश जल महासागरों में हैं, जिसे सीधे ही उपयोग में नहीं लाया जा सकता है। जब भोम-जल का स्तर अत्यधिक गिर जाता है, तब भोम-जले का और अधिक उपयोग नहीं कर सकते हैं। पृथ्वी पर जल की कुल मात्रा समान रहती है परंतु उपयोग के लिए उपलब्ध जल की मात्रा अत्यंत सीमित है ओर अति उपयोग के कारण घटती जा रही है। …. जल की माँग प्रतिदिन बढ़ रही है। जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ जल का उपयोग करने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ रही है। बहुत-से नगरों में जल भरने के लिए लंबी कतारों का दिखाई देते हैं। खाने की वस्तुओं के उत्पादन और उद्योगों में भी जल की अधिकाधिक मात्रा का प्रयोग हो रहा है। इन्ही कारणों से संसार के बहुत-से भागों में जल की कमी हो गई है। इसलिए यह आवश्यक हे कि जल का विवेकपूर्ण उपयोग किया ‘जाए। हम सावधानी बरतें, जिससे जल व्यर्थ न हो।

वर्षा के जल का संग्रहण

वर्षा के जल को एकत्र करना और उसका भंडारण करके बाद में प्रयोग करना, जल की उपलब्धता में वृद्धि करने का एक उपाय है। इस उपाय द्वारा वर्षा का जल एकत्र करने को वर्षा जल संग्रहण कहते हैं। वर्षा जल संग्रहण का मूलमंत्र यह है कि “जल जहाँ गिरे वहीं एकत्र कीजिए।’! | वर्षा के उस जल का कया होता है जो ऐसे क्षेत्रों में गिरता है जहाँ अधिकांश क्षेत्रों में कंक्रीट की सड़कें और मकान होते हें ?

यह नालियों में बह जाता है, क्या ऐसा नहीं है? इस प्रकार वर्षा जल का कुछ भाग बहकर नदियों या झीलों तक पहुँच जाता है जो कि बहुत दूरी पर हो सकते हैं। क्योंकि यह जल हमारे चारों ओर भूमि में वापस नहीं गया है अतः इस जल को घरों में वापस लाने के लिए हमें अत्यधिक प्रयास करने की आवश्यकता होगी। वर्षा जल संग्रहण की यहाँ दो तकनीकों का उल्लेख किया गया है:-

  1. छत के ऊपर वर्षा जल संग्रहण: इस प्रणाली में भवनों की छत पर एकत्रित वर्षा के जल को भंडारण टैंक में पाइपों द्वारा पहुंचाया जाता है। इस जल में,छत पर उपस्थित मिट्टी के कण हो सकते हैं जिन्हें उपयोग करने से पहले निस्यंदित कग्न आवश्यक होता हे। इस ज़ल को भंडारण टठैंक में एकत्रित करने के स्थान पर सीधे ही पाइपों द्वारा जमीन में बने किसी गड्ढे तक ले जाया जा सकता है जहाँ से यह मिट्टी -में रिसाव द्वारा भौम-जल की युनः पूर्ति करेगा।
  2. एक दूसरा विकल्प है कि सड़क के किनारे बनी नालियों द्वारा एकत्रित वर्षा का जल भूमि में सीधे पहुँचने दिया जाए।