स्वतंत्रता मनुष्य की स्वाभाविक वृत्ति है, उसका जन्मसिद्ध अभिकार है। जब किसी व्यक्ति या राष्ट्र को पराधीनता की जंजीरों में जकड़ दिया जाता है तों उसका जीवन अभिशाप बन जाता है- ”पराधीन सपनहँ सुख नहीं।” भारत को भी सदियों तक ...
स्वतंत्रता मनुष्य की स्वाभाविक वृत्ति है, उसका जन्मसिद्ध अभिकार है। जब किसी व्यक्ति या राष्ट्र को पराधीनता की जंजीरों में जकड़ दिया जाता है तों उसका जीवन अभिशाप बन जाता है- ”पराधीन सपनहँ सुख नहीं।” भारत को भी सदियों तक ...